दिल की कलम से

Main Aur Meri Tanhaayi

मैं और मेरी तन्हाई’—–कोई कविताओं और कहानियों का संग्रह नहीं है, न ही मैं खुद को किसी लेखिका या कवियत्री की तर्हां स्थापित करना चाहती हूँ। मैने बस जीवन इ कुछ अनुभवों को और उनसे मिले एहसासों को कागज़ पर उतारने की कोशिश की है।

Main Aur Meri Tanhaayi

मैं और मेरी तन्हाई’—–कोई कविताओं और कहानियों का संग्रह नहीं है, न ही मैं खुद को किसी लेखिका या कवियत्री की तर्हां स्थापित करना चाहती हूँ। मैने बस जीवन इ कुछ अनुभवों को और उनसे मिले एहसासों को कागज़ पर उतारने की कोशिश की है।

DILO-DIMAAG KI KASH M KASH

दिल और दिमाग में छिड़ी जंग है
वैसे तो दोनों ही रहते अंग संग हैं।

एक से नस नस में लहू की रवानगी है
दूसरा अगर बिगड़ जाए तो दीवानगी है।

DIL HI TO HAI

बच्चा नहीं, मासूम है — पर सच्चा है।
उम्र की हर देहलीज़ पहचानता है।
थोड़ा बचपना वाजिब है, जानता है।
——-फिर भी दिल ही तो है।।

DIL HI TO HAI

बच्चा नहीं, मासूम है — पर सच्चा है।
उम्र की हर देहलीज़ पहचानता है।
थोड़ा बचपना वाजिब है, जानता है।
——-फिर भी दिल ही तो है।।

KARVACHAUTH SPECIAL

आसमान से चाँद तोड़ लाओ, ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं,
रात में चाँद बन कर तुम, छत पर नज़र आया करो ।

मन के सूने आँगन में तुम, चांदनी अपनी बिखराया करो,
दूर से ही सही पर कभी तुम, मुझे देख मुस्काया करो ।

MAGROOR

अगर जान जाते कि, प्यार में दग़ा देने के लिए मजबूर हो तुम,
तो दिल कि बात न बताते, हो जाते थोड़े से मग़रूर हम।

बुरे तो हम भी नहीं थे सूरत के, ज़ुल्फ़ों में भी थे काफी पेचो ख़म,
कुसूर तो इन आँखों का था, जिनको भा गए बस तुम ही तुम ।

MAGROOR

अगर जान जाते कि, प्यार में दग़ा देने के लिए मजबूर हो तुम,
तो दिल कि बात न बताते, हो जाते थोड़े से मग़रूर हम।

बुरे तो हम भी नहीं थे सूरत के, ज़ुल्फ़ों में भी थे काफी पेचो ख़म,
कुसूर तो इन आँखों का था, जिनको भा गए बस तुम ही तुम ।

DHOKHA

जानते हैं जो हमें, पहचानते हैं कबसे।
पूछते हैं अक्सर यह हैरत से।।

क्या है जिसे छिपा रहे हो सबसे।
तुम तो खुश रहते थे हमेशा —
मुस्कुरा के मिलते थे दुश्मनो से।।

DIARY KE PANNO SE – 2

सावन की बौछार है—-मौसम में खुमार है—-फूलों पर बहार है—-“
कहो न प्यार है ——

वो जो कहते हैं हमसे—-की बहुत प्यार है तुमसे—-आज भी उतना ही मरते हैं तुमपे—-
उनकी बात का यकीन कैसे करूँ? ऐसा नहीं की कठोर हूँ—-भावनाओं से दूर हूँ—-
पर क्या करूँ ? दिमाग के हाथों मजबूर हूँ—

DIARY KE PANNO SE – 2

सावन की बौछार है—-मौसम में खुमार है—-फूलों पर बहार है—-“
कहो न प्यार है ——

वो जो कहते हैं हमसे—-की बहुत प्यार है तुमसे—-आज भी उतना ही मरते हैं तुमपे—-
उनकी बात का यकीन कैसे करूँ? ऐसा नहीं की कठोर हूँ—-भावनाओं से दूर हूँ—-
पर क्या करूँ ? दिमाग के हाथों मजबूर हूँ—

TUMHAARI PYAAS

आज का दिन यूँ तो हर रोज़ जैसा है
फिर भी न क्यों आज मन उदास है।

आज के दिन का भी अपना इतिहास है
मेरे कुछ बुरे दिनों में ये सबसे ख़ास है।

DIARY KE PANNO SE

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले ——
–यह दम भी कितनी अजीब चीज़ है, हर छोटी छोटी
बात पर निकल जाता है —–चट्टान जैसे इरादे —-
मज़बूत हौंसले —-फौलाद जैसे सीने का दावा करने वाली
जान —–कैसी यूँ ही बात बात पर निकल जाती है —-

DIARY KE PANNO SE

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले ——
–यह दम भी कितनी अजीब चीज़ है, हर छोटी छोटी
बात पर निकल जाता है —–चट्टान जैसे इरादे —-
मज़बूत हौंसले —-फौलाद जैसे सीने का दावा करने वाली
जान —–कैसी यूँ ही बात बात पर निकल जाती है —-

KAMBAKHT DIL

अच्छा हुआ जो दिल तोड़ दिया
एक बार फिर तनहा छोड़ दिया
हैरत है, इतनी देर क्यों लगाईं
वो जो कहना चाहते थे कबसे
अब तक दिल में क्यों दबाई
खुद पर इतना बोझ लिया
और हमारी तकलीफ बढ़ाई।।

Kyun….Aakhir Kyun ?

क्यूँ—— आखिर क्यूँ ?   

बेबस, बेतहाशा, बदहवास सी
उदास ज़िन्दगी है क्यूँ ?

अगली सांस लेने के लिए मजबूर
हर एक सांस है क्यूँ ?

Kyun….Aakhir Kyun ?

क्यूँ—— आखिर क्यूँ ?   

बेबस, बेतहाशा, बदहवास सी
उदास ज़िन्दगी है क्यूँ ?

अगली सांस लेने के लिए मजबूर
हर एक सांस है क्यूँ ?

ZINDAGI…..HAI ZINDAGI

ऐ ज़िन्दगी रोज़ नया कुछ लिखती है तू।
उम्र बीत रही है —-नज़र धुंधला रही है,
कुछ तो अपने बरसों के साथ ख्याल कर।
ज़रा थम कर —-धीरे धीरे सफा बदल,
आराम से पढूं तेरी ज़ेरो – ज़बर — और
— जियूं हर लम्हा जी भर — तेरा लिखा
सब कुछ — सर आँखों पर।

DAASTAANEY ZINDAGI……

“दास्ताने ज़िन्दगी”

कभी आ मिल ओ ज़िन्दगी
तुझसे मुलाक़ात तो हो कभी।
शायद कहीं देखा था तुझे
कुछ धुंदला सा याद है मुझे।

DAASTAANEY ZINDAGI……

“दास्ताने ज़िन्दगी”

कभी आ मिल ओ ज़िन्दगी
तुझसे मुलाक़ात तो हो कभी।
शायद कहीं देखा था तुझे
कुछ धुंदला सा याद है मुझे।

AGAR

तुमसे बेइंतहा प्यार न होता, अगर —- यह दिल इतना मजबूर न होता, अगर — इस झूठे प्यार पे गुरूर न होता, अगर — तुम्हारी रुसवाई हमें मंज़ूर होती, अगर — तुम्हारे सिवा किसी पे विश्वास हो जाता, अगर —

VALENTINES DAY……MERI NAZAR SE !

पिछले कुछ दिनों से अखबारों में, बाज़ारों में, टेलीविज़न पर, सोशल मीडिया में —–बस लाल रंग छाया हुआ है —–लाल दिल जैसी अकार के गुब्बारे, लाल गुलाब, लाल सजावट ——हर जगहं बस लाल ही लाल। यह लाल रंग भी अजीब है —-कभी सुहाग का – कभी हिंसा का, कभी प्यार का – कभी तकरार का, कहीं शर्म से और कहीं गुस्से से चेहरा लाल होता है। 

VALENTINES DAY……MERI NAZAR SE !

पिछले कुछ दिनों से अखबारों में, बाज़ारों में, टेलीविज़न पर, सोशल मीडिया में —–बस लाल रंग छाया हुआ है —–लाल दिल जैसी अकार के गुब्बारे, लाल गुलाब, लाल सजावट ——हर जगहं बस लाल ही लाल। यह लाल रंग भी अजीब है —-कभी सुहाग का – कभी हिंसा का, कभी प्यार का – कभी तकरार का, कहीं शर्म से और कहीं गुस्से से चेहरा लाल होता है। 

Main Aur Meri Tanhaayi

कहने को मेरे अपने तो बहुत हैं पर के लिए भी अपना नहीं कोई।… इस खूबसूरत और दिलकश दुनिया में क्यों इन आँखों का नज़ारा नहीं कोई।…. कुछ इस तर्हां उलझाया है इस दिल फरेब दुनिया ने कि न मौत का इंतज़ार है 

Kya samjhein hum...

सुबह का समय—–नींद अपने आप ही खुल गयी, घर में इतनी चहल पहल जो थी।
जहाँ भी नज़र जाए मेहमान ही मेहमान —–गुप् शप—–चाय के कप—-पकोड़ों
की थालियां—–मिठाई की टोकरियां—-लास, गोते, कालीरों की लड़ियाँ—–
इधर उधर बिखरी रंग बिरंगी पोशाकें और साड़ियां—-हंसी की फुलझड़ियाँ—-

Kya samjhein hum...

सुबह का समय—–नींद अपने आप ही खुल गयी, घर में इतनी चहल पहल जो थी।
जहाँ भी नज़र जाए मेहमान ही मेहमान —–गुप् शप—–चाय के कप—-पकोड़ों
की थालियां—–मिठाई की टोकरियां—-लास, गोते, कालीरों की लड़ियाँ—–
इधर उधर बिखरी रंग बिरंगी पोशाकें और साड़ियां—-हंसी की फुलझड़ियाँ—-

Udaas Mun….

रुके से पर—-फिर भी
किसी अनजान सफर पे
बढ़ते हुए कदम—-

थके हुए पर—-फिर भी
आहिस्ता आहिस्ता
उठते हुए कदम—-

DARD

किसी शायर ने क्या खूब कहा है – “दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह —–” यह एक ही तो ऐसी चीज़ है जो बिन मांगे मिल जाती है — ना कोई इम्तिहान देना पड़ता है, ना कोई तैयारी करनी पड़ती है —– ना कोई अर्ज़ी लगानी पड़ती है —- ना ही इंटरव्यू देना पड़ता है।

DARD

किसी शायर ने क्या खूब कहा है – “दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह —–” यह एक ही तो ऐसी चीज़ है जो बिन मांगे मिल जाती है — ना कोई इम्तिहान देना पड़ता है, ना कोई तैयारी करनी पड़ती है —– ना कोई अर्ज़ी लगानी पड़ती है —- ना ही इंटरव्यू देना पड़ता है।

Zakhmo ke rang se, dil ki kalam se……

भीगी हो पलकें, और मुस्कुराऊँ हर पल —-
बस और नहीं !
मूँद लूँ आँखें, देख कर उनका हर छल —-
बस और नहीं !
गाउन ख़ुशी की नग्मे, जब रोता हो दिल —-
बस और नहीं !

Papa Ki Yaad Mein

कहते थे तुम मैं हूँ तुम्हारे साथ,
एक नहीं—कई बार दोहराई ये बात।

क्यों रूठे तुम, ऐसी क्या हो गयी बात,
हमें तो याद नहीं पढ़ते ऐसे कोई हालात।
न अपनी ही कही, न हमारी कुछ सुनी,
मुंह मोड़ कर चल दिए, हिला कर हाथ।

Papa Ki Yaad Mein

कहते थे तुम मैं हूँ तुम्हारे साथ,
एक नहीं—कई बार दोहराई ये बात।

क्यों रूठे तुम, ऐसी क्या हो गयी बात,
हमें तो याद नहीं पढ़ते ऐसे कोई हालात।
न अपनी ही कही, न हमारी कुछ सुनी,
मुंह मोड़ कर चल दिए, हिला कर हाथ।

CORONA KAAL MEIN

भीगी हो पलकें, और मुस्कुराऊँ हर पल —-
बस और नहीं !
मूँद लूँ आँखें, देख कर उनका हर छल —-
बस और नहीं !
गाउन ख़ुशी की नग्मे, जब रोता हो दिल —-
बस और नहीं !

Jaan Pehchaan

कहते थे तुम मैं हूँ तुम्हारे साथ,
एक नहीं—कई बार दोहराई ये बात।

क्यों रूठे तुम, ऐसी क्या हो गयी बात,
हमें तो याद नहीं पढ़ते ऐसे कोई हालात।
न अपनी ही कही, न हमारी कुछ सुनी,
मुंह मोड़ कर चल दिए, हिला कर हाथ।

Jaan Pehchaan

कहते थे तुम मैं हूँ तुम्हारे साथ,
एक नहीं—कई बार दोहराई ये बात।

क्यों रूठे तुम, ऐसी क्या हो गयी बात,
हमें तो याद नहीं पढ़ते ऐसे कोई हालात।
न अपनी ही कही, न हमारी कुछ सुनी,
मुंह मोड़ कर चल दिए, हिला कर हाथ।

Fir kuchh dil se….

दिल यह पागल दिल मे—-
—–इसे कैसे समझाऊं?
आस की शम्मा, जो अभी
पूरी जल भी न सकी——
—–उसे कैसे बुझाऊँ?