ZINDAGI.....HAI ZINDAGI

ज़िन्दगी —–

ऐ ज़िन्दगी रोज़ नया कुछ लिखती है तू।
उम्र बीत रही है —-नज़र धुंधला रही है,
कुछ तो अपने बरसों के साथ ख्याल कर।
ज़रा थम कर —-धीरे धीरे सफा बदल,
आराम से पढूं तेरी ज़ेरो – ज़बर — और
— जियूं हर लम्हा जी भर — तेरा लिखा
सब कुछ — सर आँखों पर।

जैसा लिखा है — वैसा ही जिया है —
जी रही हूँ — और जियूँगी। वास्ता है
मुझे — हम दोनों के लम्बे साथ का —
तुझे रुसवा न हनी दूँगी — पर तू भी तो
रख अपनी नज़रे करम इधर। तेरा लिखा
सब कुछ — सर आँखों पर।

कुछ वक़्त से देख रही हूँ — तेरी मनमानी
कुछ बढ़ रही है — बस मेरी ही स्लेट पर
तेरी लिक्जाइ बिगड़ रही है —मुझे नहीं
लगता, जो तूने लिखा है — वो तू खुद भी
पढ़ रही है — मैं फिर भी इसे जी रही हूँ
— और बखूबी निभा रही हूँ, ज़रा देख
मेरा भी जिगर — तेरा लिखा
सब कुछ — सर आँखों पर।

एक समय था जब बड़ा खूबसूरत था
— तेरा मेरा यह सफर — बड़ा रूहानी
लगता था तेरा हर मंज़र — तब भी थी
दुश्वारियां — पर कभी तो पड़ती थी तेरी
रेहमते नज़र — पर आजकल तेरा यह
बदला रूप देख कर — मैं ही जाती हूँ
सिहर — फिर भी कहती हूँ , तेरा लिखा
सब कुछ — सर आँखों पर।

तू ज़िन्दगी है तो क्या जान लेगी — सोचा
न था हर पल नया इम्तिहान लेगी।
मैं सोचती थी तू मेरी है — तो कभी
मेरा कहना भी मान लेगी — थकी नहीं
क्या तू मुझ पर ज़ुल्म करके — मुझे भी
चैन लेने दे और — खुद भी थोड़ा आराम
कर — अब तो थोड़ा रहम कर — ताकि
ख़ुशी ख़ुशी कह सकूँ — तेरा लिखा
सब कुछ — सर आँखों पर।

- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही