Main Aur Meri Tanhaayi
कहने को मेरे अपने तो बहुत हैं
पर के लिए भी अपना नहीं कोई।…
इस खूबसूरत और दिलकश दुनिया में
क्यों इन आँखों का नज़ारा नहीं कोई।….
कुछ इस तर्हां उलझाया है इस दिल फरेब दुनिया ने
कि न मौत का इंतज़ार है न जीने कि हसरत है कोई।…
ज़िन्दगी के सफर में कभी ऐसा भी इक दौर था
जब खुदा भी मेरी ओर था, जैसे – ‘मुझसे नहीं को।’
मसरूफियत – मगरूरियत – बेपरवाही
और जज़्बात नहीं थे कोई।
आज ऐसे मोड़ पे ज़िन्दगी लायी
जब रूठ गयी मुझसे मेरी ही परछाई।
न मेहंदी कि खुशबु बाकी रही साँसों में
न आँखों में है वह पहली सी स्याही।
फिर भी आज मिल गया अपना सा कोई
पहचान तो पुरानी है, पर बिछड़ गए थे
ज़माने कि गार्ड में बहुत पहले दूर कहीं।
आज ऐसे मिले हैं जैसे फासला नहीं था कोई
आज साथ हैं—-पास हैं—-बेहद खुश हैं —-
पुर सुकून हैं——एक दूसरे का जूनून हैं—-
“मैं और मेरी तन्हाई।”
– शिवानी ‘नरेंद्र’ निर्मोही