KARVACHAUTH SPECIAL

एक गुज़ारिश (अक्टूबर’ १७)

आसमान से चाँद तोड़ लाओ, ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं,
रात में चाँद बन कर तुम, छत पर नज़र आया करो ।

मन के सूने आँगन में तुम, चांदनी अपनी बिखराया करो,
दूर से ही सही पर कभी तुम, मुझे देख मुस्काया करो ।

तारे तोड़ के ला न सको तो क्या, अपने हाथों की शबनम
से तुम, मांग मेरी भर जाया करो। यही हैं मेरे लिए हीरे मोती,
उँगलियों से अपनी छू जाय करो।

महकेगा मेरा तन मन हर दम, बस तुम हवा बन के सहलाया करो।
जहां भी नज़र दौडाऊं देखूं तुमको, चारों दिशाएँ बन जाया करो।

न मांगू मैं मोतियों का हार, ना चाहूँ सोल्हा सिंगार —-बस प्यार,
तुम ही बस मुझमे बस के, मेरी खूबसूरती चमकाया करो ।

तुम हर पल मेरे साथ गर रह न सको, ओ साजन —–
मेरी इन हथेलियों पर तुम, मेहंदी बन के रच जाया करो ।

बस इतनी गुज़ारिश है तुमसे, हो जब मेरा ज़िक्र कहीं
तो नज़रें न चुराया करो। मैं भी हूँ तुम्हारे अपनों में
खुद को यह याद दिलाया करो ।

- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही