KAMBAKHT DIL

कम्बख्त दिल

अच्छा हुआ जो दिल तोड़ दिया
एक बार फिर तनहा छोड़ दिया
हैरत है, इतनी देर क्यों लगाईं
वो जो कहना चाहते थे कबसे
अब तक दिल में क्यों दबाई
खुद पर इतना बोझ लिया
और हमारी तकलीफ बढ़ाई।।

एक इशारा ही तुम्हारा काफी था
पर एक बार किया तो होता —-
हम तो पढ़ लेते थे तुम्हारी आँखें
कभी नज़रों में झांकने तो दिया होता
तुम्हारी ख़ामोशी करती थी हमसे बात
बस ख़ामोशी से समझाया होता ।।

तुम्हे लगा शायद मगरूर थे हम
पर दिल के हाथों मजबूर थे हम
जहां में गर तुम्हारा चर्चा मंज़ूर होता
तो खुद ही कदम पीछे हटा लिया होता
हमारा रिश्ता अनचाहा बोझ ही सही
कुछ पल के लिए ही उठा लिया होता।।

इन ज़ुल्फ़ों के साये तले पाया था सुकून कभी
यही सोच कर एक बार सेहला देते,
तुम्हे इतनी तकलीफ उठाने की ज़रुरत क्या थी
हम हाँ के तुम्हारा हर गम उठा लेते।।

जीने के लिए हंसी का मुखौटा लगाया हुआ है
खुद को जबरन मज़बूत दिखाया हुआ है,
रो कर आंसुओं से भर देते दामन तुम्हारा
खुद के झूठे वजूद ने डराया हुआ है।।

यूँ तो चल देते महफ़िल ए दुनिया छोड़ के
इस ‘कम्बख्त दिल’ का क्या करें — जिसने
तुम्हे जीने की वजह बनाया हुआ है।।

- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही