Fir kuchh dil se....

” अधूरी आस “

दिल यह पागल दिल मे—-
—–इसे कैसे समझाऊं?
आस की शम्मा, जो अभी
पूरी जल भी न सकी——
—–उसे कैसे बुझाऊँ?

दिल दुनिया की रस्में मानता नहीं है,
हर आस पूरी हो—-ऐसा ज़रूरी नहीं
यह जानता नहीं है।

आस भी ज़िद्दी है, की टूटती नहीं है
मेरी बेरुखी पर भी रूठती नहीं है।

दोनों में एक अजब सी जंग छिड़ी है
दिल भी हार नहीं मानता, और—-
दुनिया भी पत्थर लिए खड़ी है।

आस भी ज्यों की त्यों खड़ी हुयी है,
अपने पूरा होने की शर्त पर——
पहले से ज़्यादा अड़ी हुयी है।

तू तो बस एक टूटे दिल की आस है
पूरी हो जाए—-तुझमे ऐसा क्या ख़ास है ?

तू तो कांच की तरहां नाज़ुक और कमज़ोर है
फिर कैसे तेरे अंदर ताकत पुरज़ोर है—-?

ज़िद मत कर मान जा, अब यह हालात तू भी जान जा
मेरी तरहां सब सहन कर ले, खुद को मुझ में दफ़न कर ले।
खुद को मुझ में दफ़न कर ले ——–

- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही