DAASTAANEY ZINDAGI......
“दास्ताने ज़िन्दगी”
कभी आ मिल ओ ज़िन्दगी
तुझसे मुलाक़ात तो हो कभी।
शायद कहीं देखा था तुझे
कुछ धुंदला सा याद है मुझे।
लगता है सपनो में मिले थे कभी
बड़ी मनमोहक थी तेरी छवि।
पर आँख खुलते ही लगा जैसे
कोई सब कुछ लूट गया।
तेरी सुन्दर सी छवि दिखाता
था जो आइना भी टूट गया।
कोई भ्रम अब बाकी न रहा
मेरा हर ख्वाब मुझसे रूठ गया।
क्या यही थी वो ज़िन्दगी
जिसके लिए रोया किये।
क्या इसे ही पाने की आस
में जनम पर जनम लिये।
किन अँधेरी गलियों में भटके
और क्या क्या जातां किये।
तो क्यों हुआ ऐसा जब हम मिले
हम-तुम कोई एहसास न रहा बाकी।
इस एक पल के इंतज़ार में जाने
कितनी रातें यह आँखें जागी।
तुम आज के दौर में ढल गयी हो
तभी तेज़ी से रंग बदल रही हो।
सुनते थे ज़माना बदल गया है
आज हम-तुम मिले तो समझ
आया कि क्या हुआ है।
शायद पागल थे हम ——-
जो जानते हुए अनजान रहे
आँखें मूँद तुम पर विश्वास किया
और मुलाक़ात कि आस लगाए रहे।
आज तुम्हारी इस बेरुखी पर
इस कदर सदमे में हैं हम।
यह आँखें ख़ुशी से हो रही हैं नम
खुद पे ही ठहाके लगा रहे हैं हम।
वाह ! दास्ताने ज़िन्दगी —–अब भी
शायद तुझे समझ न पाए हम।
- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही