DIARY KE PANNO SE – 2

सावन की बौछार है—-मौसम में खुमार है—-फूलों पर बहार है—-“
कहो न प्यार है ——

वो जो कहते हैं हमसे—-की बहुत प्यार है तुमसे—-आज भी उतना ही मरते हैं तुमपे—-
उनकी बात का यकीन कैसे करूँ? ऐसा नहीं की कठोर हूँ—-भावनाओं से दूर हूँ—-
पर क्या करूँ ? दिमाग के हाथों मजबूर हूँ—
जब से इस दिल ने धोखा दिया है—-मैने उसे लम्बी छुट्टी पर भेज दिया है—-
वो दिमाग जिस पर दिल इतना हावी था—-की उसकी बात मैंने कभी नहीं मानी—-
आज वही दिमाग मेरा सच्चा साथी है—-दिल ने जितने ज़ख्म दिए—-दिमाग उन्हे
सहलाता है—-जीने की हर नयी वजह दिखाता है—-एक अच्छे दोस्त की तरहां—-
हर हाल में साथ निभाता है—-मुझे हर तकलीफ से आगाह करता है—-
इसलिए अब मैं भी इस अच्छे और सच्चे दोस्त की हर सलाह मानती हूँ—–
दिमाग दिल की तरहां धोखा नहीं देगा—-न फिसलेगा यह जानती हूँ—-
बहुत नाच लिया इस दिल के इशारों पर—-अब बस !
और गम झेलने और चोट खाने की हिम्मत नहीं है—-हर पल दिल की मानूं
—-ऐसी कोई ज़रुरत नहीं है—-इसलिए अब दिल से ब्रेक उप करुँगी
और दिमाग से कहूँगी—–“कहो न प्यार है—-तुमसे प्यार है—-!

- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही