DIARY KE PANNO SE

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी ——

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले ——
–यह दम भी कितनी अजीब चीज़ है, हर छोटी छोटी
बात पर निकल जाता है —–चट्टान जैसे इरादे —-
मज़बूत हौंसले —-फौलाद जैसे सीने का दावा करने वाली
जान —–कैसी यूँ ही बात बात पर निकल जाती है —-
शायद इसलिए की जान का सम्बन्ध — कहीं न कहीं
दिल से जुड़ा है —और दिल — दिल तो बच्चा है जी —
रोज़ एक नयी ख्वाहिश —-और फिर उसे पानी की ज़िद
—-और पूरी न हनी पर जान निकलने का दर —-
बहुत ही उलझा हुआ चाकर है —- पर इस दिल को
समझाए कौन —- की हर ख्वाहिश —-हर इच्छा —-
हर चीज़ —–इस काबिल नहीं होती — की उसके लिए
दम निकलने की नौबत आ जाए —-कोई तो रोको दिल
की उड़ान को —-पता नहीं कहाँ चला और क्यों चला ?
शायद किसी नयी ख्वाहिश के पीछे —- आँखों को मीचे
मीचे —-फिर भले ही उसके लिए कोई भी समझौता करना
पड़े—- खुद से —-खुद के संस्कारों से — अंतर्मन से —–
यह द्वंद्व कभी कभी बहुत बड़ा हो जाता है —-तब लगता है
——हज़ारों ख्वाहिशे कैसी —-हाय कैसी——-

- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही