AGAR

तुमसे बेइंतहा प्यार न होता, अगर ----
यह दिल इतना मजबूर न होता, अगर ---
इस झूठे प्यार पे गुरूर न होता, अगर ---
तुम्हारी रुसवाई हमें मंज़ूर होती, अगर ---
तुम्हारे सिवा किसी पे विश्वास हो जाता, अगर ---

----तो तुम्हारी बेवफाई को हंस के क़ुबूल कर लिया होता। 
हर हालात और झूठी बात से समझौता कर लिया होता। 

जान चुके हैं हमारे बीच कोई जज़्बात नहीं थे ,
उन सभी जज़्बातों को झूठलायें कैसे मगर ---
दिमाग तो कहता है दिल दगाबाज़ है, 
इस दिल की बातों में कैसे न आएं मगर ---
वो कहते हैं तुम कभी मेरे नहीं थे, 
तुम्हे किसी और का कैसे कहें मगर ---
तुम्हारा प्यार दिखावा ही सही,
हम उसे झूठलायें कैसे मगर ---

जो हमने सुना तुमने कभी कहा नहीं। 
दिल में जो गूँज रही है उस आवाज़ को
दबाएं कैसे मगर ---
मजबूर हैं मगरूर नहीं हम,
इस मुखौटे को छुपाएं कैसे मगर ---

जी लेते हम जैसे कैसे,तुमने यह
ख्वाब दिखाए न होते अगर ----
अब क्या करें , कैसे जियें, क्या कहें ?
यह ख्वाबों की दुनिया झूठी ही सही
सच्ची और अच्छी लगती है मगर ---

 

 - शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही