Main Aur Meri Tanhaayi

मैं और मेरी तन्हाई’—-कोई कविताओं और कहानियों का संग्रह नहीं है, न ही मैं खुद को किसी लेखिका या कवियत्री की तर्हां स्थापित करना चाहती हूँ। मैने बस जीवन इ कुछ अनुभवों को और उनसे मिले एहसासों को कागज़ पर उतारने की कोशिश की है।

 

‘मैं और मेरी तन्हाई’ मेरे एकांकीपन से प्रेरित है, उन तजुर्बों का अक्स है, जो जीवन के सफर के दौरान हुए। यूँ तो यह तजुर्बे हर एक के जीवन का हिस्सा होते हैं, पर हर कोई इन्हे कागज़ पर नहीं उतारना चाहता —- या उतार नहीं पाता।

मैं भी शायद अपने एहसासों या मन के भाव कागज़ पर नहीं उतार पाती —अगर मेरे पिता ने मेरे अंदर छुपी इस छोटी सी प्रतिभा को नहीं पहचाना होता। पर तब शायद मेरी उम्र और इस से जुड़ी उमीदों की और इच्छाओं की वजह से मैं इस ओर ध्यान ही नहीं दे पाई।इसकी एक वजह यह है कि – एकांकीपन क्या होता है, तन्हाई क्या होती है—-कभी समझ ही नहीं पायी।

सन २०१० के अंत में जब मैने अपने पिता को खोया, तो जीवन में अचानक एक अजीब सा सन्नाटा छा गया, ऐसा लगा शरीर रह गया रूह चली गयी।  जीवन के नए पुराने कई अनुभव  कुछ ही दिनों में बहुत कुछ सीखा गए। एक ही पल बालों में सफेदी, ख्यालों में ठहराव, मन में अजीब से जज़्बातों और एहसासों का सैलाब ले आया——और इतने सब एहसासों और लोगों के आस पास होते हुए भी, अपने पापा के बाद रह गए      –

‘मैं और मेरी तन्हाई’—

इसलिए इस प्रयास के ज़रिये मैं अपनी भावनाओं, अपने एहसासों और अपने शब्दों को अपने स्वर्गीय पिता – जो स्वयं एक बेहतरीन लेखक और कवी थे, को समर्पित करती हू।  इस विश्वास के साथ कि शायद वह जहाँ से भी मुझे देख रहे होंगे —-खुश होंगे, आशीर्वाद देंगे —-और इस कोशिश के साथ कि शायद मैं उनकी विरासत संभाल पायी – उन्ही को समर्पित है –

“मैं और मेरी तन्हाई। “

– शिवानी ‘नरेंद्र’ निर्मोही