Zakhmo ke rang se, dil ki kalam se…

‘बस और नहीं’

भीगी हो पलकें, और मुस्कुराऊँ हर पल —-
बस और नहीं !
मूँद लूँ आँखें, देख कर उनका हर छल —-
बस और नहीं !
गाउन ख़ुशी की नग्मे, जब रोता हो दिल —-
बस और नहीं !
क्यों डराने लगे, हर आने वाला कल —-
बस और न नहीं !
बेमानी सा लगने लगे, जीवन का हर पल —-
बस और नहीं !

बस————अब तो यह कहना होगा,
क्यों जीवन का हर सीता, सहना होगा।

कुछ देर ही सही, यह रूह आराम करे,
अपने कांधों का बोझ, कुछ हल्का करे।

आखिर ऐसी कौनसी ख़ताएँ हैं , जो इसने की ही नहीं
क्यूँकर और कब तक, जिनकी सज़ाएं भुगता करे।

आखिर ऐसा क्या किया है हमने,
जिसकी मिल रही है सज़ा।
बता मेरे मौला अब क्या है तेरी राजा।

क्यों अब तेरी दुनिया में, नहीं रहा
वो पहले सा मज़ा ——
ऐसी बेवफा, बेनूर, और बेमज़ा दुनिया
——बस और नहीं !
बस और नहीं !

- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही