Papa Ki Yaad Mein

फिर तेरी याद —-

कहते थे तुम मैं हूँ तुम्हारे साथ,
एक नहीं—कई बार दोहराई ये बात।

क्यों रूठे तुम, ऐसी क्या हो गयी बात,
हमें तो याद नहीं पढ़ते ऐसे कोई हालात।
न अपनी ही कही, न हमारी कुछ सुनी,
मुंह मोड़ कर चल दिए, हिला कर हाथ।

जब वादा किया था तो निभाया होता,
कुछ देर तो साथ देकर दिखाया होता।
हमारा कोई नहीं था तुम्हारे सिवा,
तुमने भी तो ऐसा विश्वास दिलाया होता।

ऐसी बेरुखी क्यों, और किस बात की ?
न हॅंस के बुलाया न ही मुलाक़ात की।
आखिर ऐसी भी क्या जल्दी थी जाने की,
एक मोहलत तो देते रब्ब को मनाने की।

हमारे रिश्ते का कुछ तो पास रखा होता,
वादे के मुताबिक मेरे साथ रहते,
और मुझे अपने साथ रखा होता।

एक बार तो आवाज़ देकर बुलाया होता,
‘गुड्डू’ कह कर गोद में बिठाया होता।
एक बार तो हाथ बढ़ाया होता,
‘मैं हूँ तुम्हारे साथ’ जताया होता।

- शिवानी 'नरेंद्र' निर्मोही