DARD
दर्द —— बेदर्द दर्द
किसी शायर ने क्या खूब कहा है – “दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह —–” यह एक ही तो ऐसी चीज़ है जो बिन मांगे मिल जाती है — ना कोई इम्तिहान देना पड़ता है, ना कोई तैयारी करनी पड़ती है —– ना कोई अर्ज़ी लगानी पड़ती है —- ना ही इंटरव्यू देना पड़ता है। यह तो एक ऐसी अनचाही चीज़ है – जो ना तो ख़्वाबों में आती है —- ना दुआओं में मांगी जाती है। दर्द को अपने पास बुलाया जाए — ऐसा कोई दस्तूर नहीं है —- और बिन बुलाये आ ना सके —- दर्द इतना मगरूर नहीं है। यह कोई पक्षपात भी नहीं करता है —- अमीर -गरीब, छोटा -बड़ा सभी को बराबर से मिलता है। यह दर्द किसी बाज़ार में बिकता नहीं है —- किसी मॉल में सजा हुआ भी दिखता नहीं है। यह आराम से बिन दाम मिल जाता है —– और बिन खरीदे तन -मन को सजाता है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो आसानी से टूटता नहीं है —– और किसी बेवफा मश्होक की तर्हां रूठता नहीं है। दर्द मेरा है —- बस मेरा, हर पल मेरा साथ देता है —- यह जताने से डरता नहीं है। खाली बटुए —- खोखले रिश्तों की तरहाँ कोई झूठा दावा करता नहीं है। दर्द से दूर भागना —- या झुठलाना नादानी है—-यही एक सच्चा रिश्ता है—–बक्की सब रिश्ते बेमानी हैं। यह दर्द बड़ा बेदर्द है —- कभी गरम—-कभी सर्द है। पर जाने लगता मीठा क्यों है—-सब कुछ मेरा बदल गया है—-पर यह मेरे साथ ज्यूँ का ट्यून है। यह दर्द किसी मरहम का इंतज़ार नहीं करता—-बेवक़्त – बेवजह मुझसे तक़रार नहीं करता। यह दर्द रिश्तों का मोहताज नहीं है—-जो करीबी हैं उनसे न मिले, ऐसा कोई रिवाज नहीं है—-इसे किसी भी रिश्ते का लिहाज़ नहीं करता—-जहाँ से उम्मीद न हो—-वहीँ से ज़्यादा मिलता है। यह दर्द रिश्तों की तर्हां भरमाता नहीं है—-मुझे छोड़ देगा, ऐसा कहकर डराता नहीं है। इस दर्द ने मेरा सम्मान बढ़ाया है—-हर पल मेरे साथ रहकर मुझे धनवान बनाया है। जब भी किसी रिश्ते ने मुझे झूह्लाया है—-दर्द ने दिल खोल कर मुझ पर अपना सब कुछ लुटाया है। उम्र न साथ छोड़ दिया—-सेहत ने भी रिश्ता तोड़ दिया—-पर दर्द ने मुझसे पक्का रिश्ता जोड़ लिया। धन-दौलत भी रंग-रूप की तर्हां स्वार्थी निकली—-एक मतलबी आशिक की तरहाँ बस कुछ पल ही टिकी—-बुरा समय आते ही हाथों से रेट की तरहाँ फिसली—-पर दर्द को कोई हिला न सका—-मेरे खिलाफ उसे वर्गला न सका। वह पहले जितना था—–आज भी उतना मेरा है—–बाकी रिश्तों की तरहाँ उसने—-कभी न मुझसे मुंह फेरा है। जाने क्या पाया है उसने मुझमे—-जो मुझे छोड़ के जाता नहीं है—-शायद उसे कोई और इतना भाता नहीं है। हमेशा मेरे ज़ख्मो को सहलाता है—-मैं कहीं नहीं गया, शायद यह बताता है। अब तो दर्द अपना सा लगता है—-न देखा पर पूरा हुआ सपना सा लगता है। अब यह मेरा मेहबूब है—-इसका मेरा रिश्ता भी क्या खूब है। इसने मेरे सूनेपन को दूर किया है—-अपना साथ भरपूर दिया है। लोगों को बस लखुशियों की दरकार है—-मेरा दामन दर्द के लिए बेकरार है।
- शिवानी ‘नरेंद्र’ निर्मोही
